Friday 10 June 2011

Eh Dost...

क्या कहू अज तुझसे ऐ मेरी दोस्त,
लगती है शब्दों की कमी मुझे,
पर विषय है यह बड़ा ही अनमोल...

करना है शुक्रिया तेरा,
जो ये दोस्ती का हाथ बढाया,
दिया साथ मेरा सुख दुःख में,
और हमेशा दोस्ती को निभाया...

लड़ाई की हमने कई बार,
और आसुयो से भीगा भी दिया...
कभी फूल तोह कभी काटो का ताज पहना दिया...

कटे हमने कई पल साथ,
कुछ थे दुःख भरे और कुछ में पाई खुशिया हज़ार...
पर ये दोस्ती रही कायम हर बार...

अज भले ही जा रहे है हम अपनी मंजिल पाने,
स्थापित करने एक नया कीर्तिमान, 
हासिल करने अपने सपनो का ये जहां...

मिलेंगे फिर इस ज़िन्दगी के सफ़र में कहीं,
 याद रखेंगे ऐ मुसाफिर तुझे हम,
न भूलेंगे तुझे और तेरी  बातें को इस ज़िन्दगी क सफ़र में कभी हम...

2 comments:

Ritu said...

Yaaron..dosti...badi hi haseen hai
ye na ho to bolo kya hai zindagi...
koi to ho raazdaar, begaraj tera ho yaar..

Anonymous said...

chahe raho khafa khud se
chahe karo gila khud se
bas itna yaad rakhna hamesha
kabhi na hona juda dost se

shadnar poem aditya...kya bat hain