ये रत की शांति कुछ कह जाती है...
अपने ठन्डे ठन्डे झोको से, मंत्र मुग्धा कर जाती है...
पेड़ो की आवाज़ जैसे कह रही हो झुमने दो अज मुझे...
लहराने दो अब इस हवा के साथ मुझे...
कीड़ो की आवाज़ जैसे कोई राग है सुनती,
बिना सुर-ताल और लय के एक नया अंदाज़ है बनती...
चाँद कहीं छुपा बैठा है बदलो में,
हलकी सी चांदनी दिए रोनक ला रहा है इस दुनिया में...
ठंडक और शीतल झोके उठ रहे है अज,
बिना किसी मोह के सुकून दे रहे है अज...
चौकीदार बजा रहा है सिटी,
हाथ में लिए है लाठी, लेकिन सोते सोते करता है चौकीदारी...
आज रात है अँधेर,
पर लगती है सुहानी,
बिजली का पता नहीं,
ना ही पता है समय का,
यू ही बीत जाये ये रात,
नहीं है चिंता कल की सुबह का...
बूंदों की आवाज़ दी मुझे सुनाई,
अज रत बरसेगा पानी और कड़के की बिजली
गरजेंगे बदल, तृप्त होजाएगी ये धरती...
कल होगी एक नई सुबह और हर जगह होगी हरियाली...